हमारे चारों ओर जो भी चीज़ें हैं, वो दो तरह की होती हैं — जीवित (Living) और अजीव (Non-living)।
1. क्या है "जीवित"?
कोई भी चीज़ जीवित (living) मानी जाती है अगर उसमें कुछ खास गुण होते हैं। इन गुणों को "जीवित लक्षण" कहते हैं। आइए, इन्हें आसान भाषा में समझते हैं:
1.1. वृद्धि (Growth):
हर जीव बढ़ता है। जैसे — एक बीज पेड़ बनता है, बच्चा बड़ा होकर वयस्क बनता है।
पौधों में वृद्धि जीवन भर होती रहती है, लेकिन जानवरों में एक उम्र के बाद रुक जाती है।
पर ध्यान देने की बात ये है कि कुछ अजीव वस्तुएं जैसे बालू का टीला या बर्फ का गोला भी बड़ा हो सकता है, पर वो बाहरी कारणों से होता है, खुद से नहीं। इसलिए सिर्फ वृद्धि को जीवित होने का पक्का सबूत नहीं मान सकते।
1.2. जनन (Reproduction):
जीव जनन करते हैं — यानी अपनी तरह के और जीव बनाते हैं।
इंसान, जानवर, पौधे सभी किसी न किसी तरह से जनन करते हैं।
लेकिन, सभी जीव हर समय जनन नहीं करते (जैसे — खच्चर, worker मधुमक्खी आदि)। फिर भी वो जीवित होते हैं। इसलिए जनन को भी अकेला मापदंड नहीं माना जा सकता।
1.3. चयापचय (Metabolism):
ये शरीर के अंदर चलने वाली रासायनिक क्रियाएं होती हैं — खाना पचाना, ऊर्जा बनाना, कोशिकाओं का बनना-टूटना आदि।
ये हर जीव के अंदर हमेशा चलता रहता है।
कोई भी अजीव चीज़ चयापचय नहीं कर सकती। इसलिए ये जीवित होने का सबसे पक्का सबूत है।
1.4. उद्दीपनशीलता (Response to Stimuli):
जीव अपने वातावरण के बदलावों पर प्रतिक्रिया देते हैं।
जैसे — हम गर्म चीज़ छूते हैं तो हाथ खींच लेते हैं। सूरज की ओर मुड़ते पौधे, जानवरों का खतरे पर भागना — ये सभी इसी का उदाहरण हैं।
ये लक्षण मशीनों में भी कभी-कभी दिखता है (जैसे सेंसर), पर वो सोच के नहीं, प्रोग्राम से करते हैं।
1.5. संगठन (Organization):
हर जीव कोशिकाओं से बना होता है।
ये कोशिकाएं एक क्रम में जुड़ी होती हैं — कोशिका → ऊतक → अंग → अंग-तंत्र → शरीर।
ये संगठन दिखाता है कि जीवन कितना जटिल और संतुलित है।
निष्कर्ष (Conclusion):
"जीवित" कहने के लिए जरूरी है कि वो चयापचय करें, उद्दीपनशील हों, एक संगठित शरीर हो, और यदि संभव हो तो जनन करें व वृद्धि भी करें।
लेकिन इन सब लक्षणों को एक साथ देखकर ही किसी चीज़ को जीवित माना जा सकता है।
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